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एक रहस्यमय ड्रामा

यूँ ही जब हाथ में चाय का कप लिए, खिड़की के फलक पर पड़ रही बारिश की बूंदों को देखते-देखते नज़र आँगन में रखे पौधों पर पडी, तब अचानक फ़ोन की घंटी बजी और परेशान आवाज़ में एक दोस्त ने कहा कि, “मैं ही क्यूँ ?, हमेशा मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है?, हमेशा मुझे ही क्यूँ सहन करना पड़ता है?, वे गलत हैं और मैं सही हूँ |” मैंने आराम से पूछा की हुआ क्या? विस्तार से जानने पर पता लगा की ज़रा सी किसी बात पर उसकी किसीके साथ अनबन हो गयी थी | काफी देर बात करने के बाद जब उसने फ़ोन रखा, तब हमारे मन में भी यह विचार चला की यह सवाल हम अपने आप से भी तो कई बार पूछते हैं कि ‘मैं ही क्यूँ ?’ | यह सवाल मन को भारी करता है और अपने साथ कई ऐसे मन को भारी करने वाले विचार ले आता है और हमें असहाय बना देता है | कई बार हमारे सम्बन्ध भी बिगाड़ सकता है |

” यूँ ही एक छोटी सी बात पे,
ताल्लुक़ात पुराने बिगड़ गए,
मुद्दा ये था कि सही “क्या” है?
और वो सही “कौन” पर उलझ गए |”
-गुलजार

हमने सोचा इस सवाल का जवाब मन को एक अलग तरीके से दिया जाए | इसे एक अलग नज़रिये से देखा जाए | ऐसे विचार मन को दिए जाए जिससे वो हल्का हो जाए | यह जो निरंतर गोल घूमने वाली पृथ्वी है, इसे एक बड़ी स्टेज मान लिया जाये | जिसमे जीवन रूपी ड्रामा (नाटक) चल रहा है | यहाँ रहने वाला हर इंसान इस ड्रामा में एक्टर है | हर एक का अपना अलग किरदार (पार्ट) है | किसी एक इंसान का पार्ट या आचरण किसी दूसरे से मिल नहीं सकता | क्यूँकि इस ड्रामा का हर किरदार विचित्र है और उसे निभाने वाला इंसान भी अनोखा, विशेष और अद्वितीय है | ड्रामा की हर सीन भी अलग है | एक सेकंड भी दूसरे से मिल नहीं सकता | एक ही परिस्तिथि को देखने का सबका अपना अलग नजरिया है | यहाँ कोई गलत नहीं, बस एक दो से अलग है |
उदाहरण के तौर पर, जब हम टिकट खरीद कर कोई सिनेमा शो देखने जाते है और उसमे जब हीरो को अचानक बंदूक की गोली लगती है, तब हमे भले थोड़ा बुरा लगता है, परंतु हम अंदर से तो जानते हैं कि यह सिर्फ एक खेल है, नाटक है और हीरो वास्तव में बिल्कुल ठीक है | उस समय क्या हम खलनायक के या हीरो के किरदार के बीच में दखल देते है? क्या हम उन्हें कहते है कि आप गलत है? नहीं | हम यही सोचते है कि उनका उस खेल में ऐसा रोल है | इसी प्रकार, हमारे सामने जब किसी तरह की परिस्तिथियाँ (किसी व्यक्ति विशेष से) आती है, तब असहाय या किसीको गलत कहने की बजाय क्या हम अपने मन को यह नहीं समझा सकते कि इस जीवन रूपी ड्रामा में इनका ऐसा पार्ट है | इनकी अपनी अलग राय है | यह हमसे अलग ज़रूर है परंतु गलत नहीं है |

इस ड्रामा के कई रहस्य हैं | जैसेकि हम किसी के भी किरदार को बदल नहीं सकते | हाँ, हम अपनी विचारधारा ज़रूर सामने रख सकते है परंतु हमारे अनुसार चलने के लिए किसी पर भी दबाव नहीं डाल सकते | चाहे फिर वो हमारे सगे सम्बन्धी हों, रिश्तेदार हों या मित्र हों | यह ड्रामा एक्यूरेट (accurate) है | ड्रामा करेक्ट (correct) है | इसमें फेर बदल नहीं हो सकती | और यह कल्याणकारी है | जितना जल्दी हम यह स्वीकार कर लेंगे उतना जल्दी हम औरों को भी स्वीकार कर पाएंगे | जिस प्रकार एक सर्कस के शो का हम मज़ा लेते है, वो हमे मनोरंजक लगता है, कुछ सिखाता भी है | उसी प्रकार यह जीवन रूपी ड्रामा भी मनोरंजक है | इसकी एक-एक सीन का आनंद हमे लेना है | हर एक सीन मानो हमे हँसाने, सिखाने और कुछ समझाने आयी है | हम हमेशा से सुनते आये ही है की ‘जो होता है अच्छे के लिए ही होता है’ | मन में उठी क्यों, क्या की लम्बी कतार को इससे रोका जा सकता है |

SONG: ZINDAGI KUCH TOH BATA (REPRISE) SINGER: JUBIN NAUTIYAL, PRITAM MUSIC DIRECTOR: PRITAM LYRICS: NEELESH MISHRA MUSIC LABEL: T-SERIES

एक लोकप्रिय गीत का ऑडियो इस लेख के साथ अटैच किया गया है, जिसमे बड़े मनभावन तरीके से ज़िन्दगी से बात की गयी है | बड़े प्यार और आराम से ज़िन्दगी की हथेली पर अपना नाम लेखक लिख रहे है | अपना नाम ज़िन्दगी के नाम से तब जुड़ सकता है जब हम ड्रामा में अपनी भूमिका को महत्व दें | दूसरे क्या कर्म करते हैं, कैसे करते है इसे छोड़कर, हमारा ध्यान अपनी तरफ रहे | हमारा पार्ट इस ड्रामा में एक विनीत उपस्तिथि (gracious presence) का काम करे | जैसे कई बार किसी नाटक का विशेष कोई किरदार दर्शकों पर अपनी छाप छोड़ देता है, उसी प्रकार हमारा रोल इतना शानदार हो कि जो औरों पर प्रभाव डाले |
जीवन रूपी ड्रामा की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि मुझे मेरा किरदार कैसा बनाना है, वो लिखने की कलम मेरे हाथ में है | हम अपने लिए हर सीन जितनी सुंदर बनाना चाहे, बना सकते है | इस ड्रामा में अपने पार्ट का और केवल अपने ही पार्ट का निर्देशक (director), लेखक (writer) और अभिनेता (actor) मैं खुद हूँ | गीत में जिन पत्रों को पढ़ने की बात है, वे तो शायद लोगों का या परिस्तिथियों का आना जाना होगा, जो पहले से ही निश्चित है, जिन्हे हम बदल नहीं सकते | परंतु जिन कोरे पन्नों की बात है, उनपर हम अपनी भूमिका को बेहतरीन प्रस्तुति देने वाले सीन्स लिख सकते हैं | और जब ड्रामा में अपना पार्ट खुद ही को लिखने का अवसर मिले तो क्यों न इसे ऐसे लिखा जाए जैसे किसी हीरो का पार्ट हो | हम इस ड्रामा के हीरो एक्टर बन जाए |
कई बार एक अदभुत नाटक खतम होने पर दर्शक वन्स मोर, वन्स मोर, वन्स मोर कहते है या उत्साह पूर्वक तरीके से तालियाँ बजाकर अभिनेताओं का स्वागत करते है, उमंग बढ़ाते है | हमारा रोल भी इस जीवन रूपी नाटक (ड्रामा) में ऐसा हो जो बार बार देखने का मन करे, अन्य लोग भी हमारा अभिनय देखकर तालियाँ बजा उठे |

अपनी ज़िंदगी को भी एक सुनियोजित ड्रामा के रूप में देखे, तो आने वाली परिस्तिथियाँ खेल की तरह अनुभव होंगी और लोगो के प्रति भी आदर, सम्मान बड़ेगा और मन सदा हल्का और ख़ुशनुमा रहेगा |

अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया तो हमे कॉमेंट्स में ज़रूर बताये | और इस लिंक को शेयर ज़रूर करें |
To read the concise and english translation (Happy all the Time!) of the above post, click here.

3 thoughts on “एक रहस्यमय ड्रामा

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